गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

लोक जीवन म रचे-बसे परब: अक्ती

 


हमर भारत गांव मन के देस आय, जिंहा देस के अड़सठ प्रतिसत लोगन मन रइथें, लगभग बत्तीस प्रतिसत सहर मन म रइथें। गांव मन के लोक-परम्परा, तीज-तिहार, आचार-विचार, लोक-जीवन के ऊर्जा के स्त्रोत आय। एही लोक-परम्परा अउ लोक-संस्किरिति के कारन प्रत्येक छेत्र अउ प्रदेस के अपन अलग-अलग पहचान हवय।


हमर छत्तीसगढ़ के लोक-जीवन म रचे-बचे लोक-परब, अक्ती-तिहार किसान मन के पहली तिहार माने गे हे, याने इहां के किसान मन के नावा बछर ‘अक्ती’ ले सुरु होथे। ए दिन कोटवार मन गांव म मुनादी करथें- ‘छाहुर बंधाय बर चला हो’ एकर बाद गांव के किसान मन अपन-अपन कोठी ले पांच या सात प्रकार के अन्न (बीज) चुरकी या महुआ पान के दोना म ले के ‘ठाकुरदिया जाथे, जिहाँ ‘ठाकुर देवता’ बिराजमान रइथें। हर गांव के सिवाना म ग्राम देवता के रुप म ठाकुर देव के पूजा-पाठ गाँव वाला मन करथें। बइगा ह ‘ठाकुर देवता’ के पूजा-पाठ करथे, किसान मन होम-धूप देथें अउ ठाकुर देव ल प्रनाम करके बीज मन ल भुइयाँ म बिखेर देथें, फेर नांगर के लोहा के फाल म भुइयां के खोदाई करके प्रतीक रुप म बीज के बोनी करथें। ओकर बाद महुआ पाना के दोना म पानी भर-भर के सिंचाई करथें। अउ भुइयां ल प्रनाम करके धरती दाई ले प्रार्थना करथें- ‘हे धरती दाई, हमर कोठी ल अन-धन ले भर देबे, तोरे किरपा ले हमर गाँव अउ परिवार मा सुख-समृद्धि आही।

अक्ती तिहार ल हमर छत्तीसगढ़ म ‘बर-बिहाव’ के कारन घलो जाने जाथें। ऐ दिन छत्तीसगढ़ के गांव-गांव अउ सहर-सहर म अब्बड़ बिहाव होथे। एही कारण अक्ती तिहार बिहाव अउ लगन के महा परब माने जाथे। बइसाख महीना के अंजोरी पाख तीज के दिन अकती तिहार ला मनाथे। सास्त्र पुरान मा येला ‘अक्षय तृतीया’ कहे जाथे। अक्छय के अरथ होथे-जेहर कभू नास नई होवय, ते पाय के ये दिन ला बड़ सुभ माने जाथे, अर्थात् ये दिन जौन भी कारज करे जाही वोहर बने सुभ होही, फलही-फूलही। हमर छत्तीसगढ़ म अकती के दिन अबड़ अकन गांव-गांव अउ सहर मा बर-बिहाव होथे। अइसे मानता हावय कि अकती के दिन जौन भी दुल्हा-दुलहिन के भांवर परथे, ओ जांवर-जोड़ी जिनगी भर सुखी रइथें। अकती के दिन कन्या दान करे म बेटी के माता-पिता ला जादा पुन्न मिलथे। कन्यादान ला महादान माने गे हे। बेटी घर के लछमी होथे अउ माता-पिता घर के लछमी के महादान करके ‘विष्णु भगवान’ रुप दमाद पा जाथे। अकती के दिन बर-बिहाव करे के जुन्ना रिवाज हावय, फेर छत्तीसगढ़ म कई ठन अउ रिवाज हावय जेला ऐही दिन मनाए जाथे। जइसे पुतरा-पुतरी बिहाव करे के रिवाज, देवी-देवता अउ पेड़ के पूजा करे के रिवाज, करसी पूजा करे के रिवाज आदि-आदि


हमर छत्तीसगढ़ के लोक-जीवन म रचे-बचे लोक-परब, अक्ती-तिहार किसान मन के पहली तिहार माने गे हे, याने इहां के किसान मन के नावा बछर ‘अक्ती’ ले सुरु होथे। ए दिन कोटवार मन गांव म मुनादी करथें-

छत्तीसगढ़ के परमुख तिहार अक्ती

छत्तीसगढ़ म बछर भर कोनो न कोनो तिहार महिना के अनुसार होथे। सबो तिहार के अपन महत्व होथे। अक्ति हा हमर छत्तीसगढ़ के लोक तिहार म परमुख तिहार आए। जेहा बैसाख महिना के अंजोरी पाख के तीज के दिन अक्ति होथे। ये तिहार ल हमर छत्तीसगढ़ म अड़बड़ उमंग, उत्साह अउ हसी खुशी ले मनाए जाथे। सास्त्र पुराण म अक्छय तृतीया कहे जाथे, अक्छय के अरथ होथे कभू नास ना होना। ये दिन जतका दान पुन अउ सुभ कारज करे जाये ओकर अक्छय फल मिलथे।

महत्तम- कहे जाथे ये दिन जेन मनखे मन अपन पुरखा ल अक्ति पानी देथे तउन ह सोझे ओ मन ल मिल जाथे। ब्रम्हा के बेटा अक्छय ह इही दिन पैदा होय रिहिस हे। ऐकरे सेथि ये दिन के महत्ता हा छत्तीसगढ़ म अड़बड़ होथे।

पुतरा-पुतरी बिहाव- इही अक्षय तृतीया के दिन गांव-सहर म लइका मन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचाथे, तेमे पारा-मुहल्ला के जम्मो सियान मन घलो आथे। तेल हल्दी चढ़ाथे, मउर बांधथे, दुल्हा-दुल्हिन ल संवागा पहिनाथे, भांवर किंजरथे, टिकावन बइठार के धरम टीका टिकथे अउ सुघ्घर बिहाव गीत गाथें। इही धरम ले... धरम हे गा...आगा मोर भैया.....। सुग्घर लगन - अक्ति के दिन बिहाव के सबले सुघर सगन होथे। कतको जगा आदर्स सामूहिक बिहाव के आयोजन घलो होथे। काबर के ये दिन पोथा-पथरी के देखे के जरूरत नइ पड़े।

पूजा-अर्चना- ये दिन गांव म बिहनिया ले जम्मो किसान मन परसा पान के दोना बना के धान ल दोना म भर के ठाकुर देवता म चढ़ाथे। बइगा पूजा-पाठ करथे। अउ बछर भर ले बंधाय पैरा के लोटना के बिजहा धान ला खोल के जम्मो चढ़े धान म मिलाथे। ओकर बाद ठाकुर देवता के अंगना म मनखे मन नागर खिच के जोताई करके धान बोथे। तेकर पाछू गांव के जम्मो किसान मन ला लईन से दोना में धान ल भर के बइगा ह बांटथे। ओकर बाद आगर बछर बर बाचे धान ला पैरा के बनाए लोटना म धान ल धर दे आथे। सबो किसान ह दोना म धान ला धर आथे, तब घर के मोहाटी म घर के कोनो भी मनखे पानी ओइछ के ओकर धान के पूजा-पाठ करथे, तब दोनो ल किसान ह घर लाथे अउ पूजा के जगा म रखथे।


ये दिन ल सुभ दिन माने गे हे

छत्तीसगढ़ म अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे। ये दिन ल बहुत ही सुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत ही लाभ या पून्य मिलथे। अइसे वेद पुरान म बताय गेहे।

कब मनाथे - अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे कि जो भी सुभ काम करबे ओकर कभू छय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे।

परसुराम अवतार - परसुराम के अवतार भी इही दिन होय रिहिसे। ओकरे पाय आज के दिन ल परसुराम जयंती के रुप म भी मनाय जाथे।

आज के दिन भगवान बिसनु अऊ लक्छमी के भी पूजा करे जाथे। एकर पूजा करे से बिसेस लाभ मिलथे।

दुवापर युग के समापन - पौरानिक कथा के अनुसार आज के दिन ही महाभारत युद्ध के अंत होइसे अऊ दुवापर युग के समापन भी होइसे। ये सब कारन से अकती के बहुत महत्व हे।

खेती किसानी के सुरुवात - छत्तीसगढ़ ह कृसि परधान राज हरे। इंहा के जीविको पारजन ह खेती किसानी से चलथे। अकती के दिन किसान मन ह ठाकुर देव के पूजा पाठ करथे अऊ धान के बोवाई ल भी एक परतीक के रुप म करथे। सब किसान मन ह ठाकुर देव के पूजा पाठ करके खेती किसानी के फसल ह बढ़िया होय कहिके आसीरवाद लेथे।

पुतरा पुतरी के बिहाव - अकती के दिन नान नान लइका मन बहुत खुस रहिथे। आज के दिन सब नोनी बाबू मन मिलके पुतरा पुतरी के खेल खेलथे। माटी से बने पुतरा पुतरी के बिहाव करथे।

जइसे सहींच के बिहाव होथे ओइसनेच मड़वा छाथे, बाजा बजाथे, तेल हरदी चढ़हाथे, बरात जाथे, नाचथे गाथे अऊ टीकावन घलो टीकथे। टीकावन टीके बर पारा परोस के सब घर। नेवता भी देथे।

ए परकार से पुतरा पुतरी के बिहाव ल बड़े धूमधाम से करथे। एक परकार से नवा जीवन के सुरुवात अकती के दिन से सुरु हो जाथे।

बिहाव के सुभ मुहुरुत - अकती के दिन ल बिहाव के सुभ मुहुरुत माने गेहे। आज के दिन पंचांग देखे के जरुरत नइ परे। अकती के दिन जेकर बिहाव होथे ओकर जनम जनम तक साथ नइ छूटे अइसे कहे जाथे।

दान पून - आज के दिन दान पून के बिसेस महत्व हे। आज के दिन दान पून करे से बहुत बड़े पुन्य मिलथे। एकरे पाय सब आदमी ल अपन सक्ती के अनुसार दान पून करना चाही। गरीब मनखे ल भोजन करवाना चाहिए अऊ कपड़ा आदि भी देना चाहिए। गौ माता ल घास खवाना चाहिए। पशुपक्छी मन ल भी भोजन करवाना चाहिए।

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